New Education Policy 2020: किसी भी राष्ट्र के विकास का आकलन सिर्फ उसकी सामरिक,आर्थिक या सैन्य शक्ति से ही नहीं बल्कि उसकी शिक्षा और युवा वर्ग से भी होता है. आज आबादी के मामले में भारत भले ही दुनिया का दूसरे पायदान का देश है परन्तु युवा वर्ग की आबादी के मामले में भारत दुनिया मे प्रथम पायदान पर है. एक अनुमान के मुताबिक भारत की 65% से ज़्यादा की आबादी 40 वर्ष से कम उम्र की है. एक विकासशील देश के लिए उसकी युवा आबादी वरदान और श्राप दोनों हो सकती है. अगर इस युवा आबादी को सही संसाधन मुहैया कराए जाएं तो यह देश के विकास में एक अग्रणी भूमिका निभाएगी और अगर इस युवा आबादी को सही समय पर सही संसाधन उपलब्ध न हो पाए तो यही आबादी बेरोजगारी,अपराध आदि के कारण देश के लिए नकारात्मक बन जाती है.
एक ज़िम्मेदार राष्ट्र को ज़रूरी होता है एक ठोस शिक्षा नीति को ले कर आगे बढ़ना. भारत के संदर्भ में अगर कहा जाए तो भारत के लिए एक भारतीय शिक्षा नीति होना आज़ादी के बाद से ही आवश्यक था. परन्तु भारत तो आज़ाद हो गया लेकिन उसके बाद कि सरकारें अंग्रेजो कि बनाई शिक्षण व्यवस्था जिसे हम ‘मैकाले की शिक्षा पद्धति’ कहते हैं उससे देश को आज़ाद कराने में विफल रहीं. ऐसा नहीं है कि आजादी के बाद भारत की शिक्षा को ले कर चिंतन नहीं हुआ. चिन्तन खूब हुआ और उससे कुछ फैसले भी निकल कर आए परन्तु अंत तक यह फैसले पुराने समय की पद्धति को बदलने में विफल रहे. अगर अध्ययन किया जाए तो यह पता चलता है कि कांग्रेस सरकारों में जितनी शिक्षा नीतियां आई उनमें भारतीयता नाम मात्र की ही थी, वह कहीं न कहीं पाश्चात्य शिक्षा पद्धतियों पर आधारित रहीं. साल 2000-2002 तक स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार में एक भारत आधारित शिक्षा नीति पर मन्थन तो शुरू हुआ परन्तु उसको मूर्त रूप नहीं दिया जा सका.

सही मायनों में भारत की शिक्षा व्यवस्था का भारतीयकरण यानी कि भारत की ज़रूरतों के हिसाब से शिक्षण व्यवस्था की योजना बनना वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार आने के बाद शुरू हुआ. इस दिशा में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सरकार बनने के तुरंत बाद पहल करते हुए विभिन्न शिक्षाविदों एवं राज्य सरकारों से सलाह मशवरा किया और वर्ष 2017 में इसरो के पूर्व चीफ वौज्ञानिक डॉ. के कस्तूरिरंगन के नेतृत्व में एक समिति बनाई जिसको भारत की ‘शिक्षा नीति’ का प्रारूप तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई. इस समिति ने 31 मई 2019 को भारत सरकार को ‘नई शिक्षा नीति’ का प्रारूप सौंपा. इसके लगभग एक वर्ष बाद शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में कुछ छोटे बदलावों के साथ केंद्रीय कैबिनेट ने दिनांक 29 जुलाई 2020 को इसे ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के रूप में जारी किया. कुल 27 मुद्दे इस नीति में उठाये गए है जिनमे से 10 मुद्दे स्कूल शिक्षा से सम्बंधित, 10 उच्च शिक्षा से सम्बंधित और 7 अन्य महत्वपूर्ण शिक्षा से जुड़े विषय है. यह सभी विषय ढांचागत होने के साथ साथ नीतिगत भी हैं. लगभग 34 वर्षों बाद आई इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अगर निष्पक्षता से देखा जाए तो यह शिक्षा के भारतीयकरण के साथ साथ भारत की शिक्षा पद्धति को दुनिया से जोड़ती हुई दिखेगी. इसमें समग्रता,विश्वास एवं भविष्य की समृद्धि की झलक दिखती है.
New Education Policy 2020 का सबसे विशेष बदलाव ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय ‘ का नाम ‘शिक्षा मंत्रालय’ करना है. इससे न सिर्फ ढांचागत परिवर्तन होगा बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में व्यवहारिक परिवर्तन भी देखने को मिलेगा. इसी के साथ सभी प्रकार की शिक्षा के लिए एक ‘राष्ट्रीय उच्च शिक्षा आयोग’ बनाने का भी प्रावधान इस शिक्षा नीति में किया गया है. इस शिक्षा नीति में कुछ लक्ष्य भी निर्धारित किए गए हैं जिसमें वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा में ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो 50% करने का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है.इसी के साथ आने वाले 10 सालों में शिक्षा पर खर्च 20% बढ़ाने के साथ ही भविष्य में जीडीपी का 6% शिक्षा पर खर्च हो ऐसी योजना बनाई जा रही है.
स्कूली शिक्षा/ New Education Policy 2020

इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पूर्व माध्यमिक शिक्षा से ले कर उच्च शिक्षा तक को पूर्ण रूप से भारतीय छात्रों की ज़रूरत को देखते हुए बनाया गया है. फिर चाहें बरसो पुरानी 10+2 की स्कूली शिक्षा पद्धति को 5+3+3+4 के फॉर्मूले पर करते हुए 10वी में बोर्ड की अनिवार्यता खत्म करना हो या कक्षा पांच तक(आंठवी तक बढ़ाया जा सकता है) मातृ भाषा में शिक्षा को वरीयता देते हुए दो अन्य भाषाएं सीखने की सुविधा देना हो. इस शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं और मातृभाषा ओर ज़ोर दिया गया है,जिससे छात्रों को बहुभाषी ज्ञान रहे. इसी के साथ स्कूली छात्रों पर बोर्ड परीक्षा का दबाव कम करते हुए उसे सिर्फ उनके मूल ज्ञान और विषय को जांचने के लिए रखना दर्शाता है कि यह शिक्षा नीति छात्रों पर गैरजरूरी दबाव खत्म करते हुए उन्हें नया सीखने को और समझने को प्रेरित करती है. इसी के साथ स्कूली शिक्षा में काफी रचनात्मक बदलाव जोड़ते हुए ‘बैग रहित दिवस’ की बात की गई है,यह साल में 10 वह दिवस रहेंगे जिस दिन छात्रों को वोकेशनल इंटर्नशिप करने का मौका मिलेगा. इसी के साथ स्कूली स्तर पर भी विषय चुनाव को आसान बनाते हुए छात्रो को अपना मनपसंद विषय चुन कर पढ़ने की छूट दी गई है यानी कि अब गणित और विज्ञान के साथ राजनीति शास्त्र भी पढ़ा का सकेगा. स्कूल कॉम्प्लेक्स के निर्माण फॉर्मूले से स्कूलों के संसाधनों में बढ़ोतरी होगी. स्कूली स्तर पर यह बदलाव आने वाले समय की पीढ़ियों के लिए बहुत ही ज़्यादा लाभकारी होगा.
उच्च शिक्षा /New Education Policy 2020

New Education Policy 2020 में उच्च शिक्षा को ले कर भी बहुत ही व्यापक और दूरदर्शी नीति बनाई गई है. यह न सिर्फ छात्रों को बहुआयामी शिक्षा का मौका देते हुए उनका ज्ञान वर्धन करेगी बल्कि उनके कौशल विकास में भी अहम भूमिका निभाएगी. उच्च शिक्षा के क्षेत्र की तमाम प्रकार की संस्थागत अड़चनों को दूर करने का प्रयास हुआ है. जिसमें सर्वप्रथम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दाखिले को ले कर परेशान रहने वाले छात्रों के लिए अब अलग अलग कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने के लिए NTA द्वारा साल में दो बार संयुक्त प्रवेश परीक्षा आयोजित कराई जाएंगी. यानी छात्रों को साल में दो बार दाखिले का मौका मिलेगा। इसी के साथ स्नातक के कोर्स को 4 वर्ष का करने का प्रस्ताव दिया गया है।एक महत्वपूर्ण घोषणा यह भी है कि अगर कोई छात्र किन्हीं कारणों से अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाते है उन्हें बाद में शिक्षा पूरी करने के लिए क्रेडिट बैंक की सुविधा दी जाएगी।यानी उन्होंने जहां से खत्म किया वह वर्षों बाद वहीं से शुरू कर सकते हैं. इसी के साथ निजी क्षेत्र के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के लिए ‘ फीस कैप’ लगाने की योजना है। जिसके तहत निजी संस्थान मनमाने ढंग से फीस बढ़ोतरी नहीं कर पाएंगे।इस नई शिक्षा नीति ने न सिर्फ भारत के विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों की राह आसान की है बल्कि विदेशों के विश्वविद्यालय एवं कॉलेजों के लिए भी भारत में अपने संस्थान खोलने की राह बना दी है। सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को वर्ष 2040 तक बहु विषयक संस्थान बनाने पर जोर रहेगा जहाँ सभी विषयों की पढ़ाई हो सके।इस शिक्षा नीति में सिर्फ शिक्षा ही नहीं बल्कि शिक्षा की गुणवक्ता का खास ख्याल रखते हुए सरकार और निजी दोनों ही प्रकार के संस्थानों के विकास पर जोर दिया गया है।इसी के साथ भारत की शिक्षा व्यवस्था में प्रथम बार शोध के लिए अलग से योजना बनी है।भारत के संस्थानों में शोध कार्यो के लिए ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ बनाने की बात की गई है।इसमें शोध के लिए विशेष तौर पर शोध विश्वविद्यालयों की स्थापना की बात की गई है।इससे भारतीय शोध की गुणवक्ता में इजाफा तो होगा ही शोध छत्रो को संसाधन भी आसानी से मुहैया हो पाएंगे.
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्कूली स्तर से ले कर उच्च शिक्षा तक शिक्षा की गुणवक्ता बढ़ाने के लिए हर स्तर पर शिक्षकों के लिए विशेष ट्रेनिंग पाठ्यक्रम रखने का प्रावधान है. इसमें एक विशेष प्रावधान बीएड की शिक्षा को स्नातक के साथ ही जोड़ते हुए 4 वर्ष का इंटीग्रेटेड कोर्स बनाना भी है.
इसी के साथ समय के साथ उच्च शिक्षा में गुणवक्ता एवं संसाधनों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए उच्च शिक्षण संस्थानों में पब्लिक फंडिंग को मंजूरी दे दी गई है. इससे न सिर्फ संस्थानो का ढांचागत विकास होगा बल्कि छात्रों के लिए स्कॉलरशिप एवं सुविधाओ के अवसर बढ़ेंगे.
इस शिक्षा नीति को सर्वसमावेशी,समग्र बनाने के लिए हर वंचित वर्ग का भी ख्याल रखते हुएल बनाया गया है. इसमें सामाजिक वंचित वर्ग,दिव्यांगों एवं लैंगिक वंचित वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किए है जिसमे से पिछड़े क्षेत्रों में ‘विशेष शैक्षिणिक क्षेत्र’ की स्थापना का प्रावधान सबसे विशेष है. इसी के साथ वंचित वर्गों के लिए विशेष स्कॉलरशिप का भी प्रावधान किया गया है. इस शिक्षा नीति के द्वारा शिक्षा का भारतीयकरण करते हुए हर वर्ग के छात्रों को बहुआयामी बनाने पर अधिक जोर दिया गया है जिससे भविष्य में उन्हें अवसरों को बनाने और लाभ लेने दोनों का मौका मिले.
New Education Policy 2020 एक आशावादी भारत का जीता जागता उदारहण है जो भविष्य के ‘आत्मनिर्भर’ भारत को बनाने में अहम भूमिका निभाएगी. इस नीति के माध्यम से भारत के शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त जटिलताओं को खत्म करने की ओर बड़े कदम उठाए गए हैं. यह शिक्षा नीति इतनी समावेशी एवं सम्रग है कि आज विपक्ष के पास भी इस पर सवाल उठाने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं रह गया है, सिवाए पब्लिक फंडिंग को निजीकरण से जोड़ कर भ्रांति फैलाने के।यह सिद्ध करता है कि नीतिगत रूप से यह शिक्षा नीति विपक्षी पार्टियों को भी रास आ रही है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के द्वारा भविष्य में भारत की शिक्षा व्यवस्था में सिर्फ ढांचागत ही नहीं बल्कि व्यवहारिक बदलाव भी आएगा जिससे युवा शक्ति को सही दिशा मिलेगी एवं ‘नए भारत’ के सर्वागीण विकास में लाभकारी सिद्ध होगी.